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विज्ञान जाति धर्म के आधार पर नहीं करता है भेदभाव



अल्मोड़ा । साहित्यकारों को बच्चों के लिए बाल मनोविज्ञान पर आधारित वैज्ञानिक एवं तर्क संगत रचनाएं तैयार करनी चाहिए । मीडिया को भी अतार्किक एवं अवैज्ञानिक सामग्री देने से बचना चाहिए । विज्ञान लिंग, जाति एवं धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता है ये बात बच्चों को बताई जानी चाहिए । ये बात वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं डी.आर.डी.ओ. के पूर्व निदेशक डॉ. एम.सी. जोशी ने उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिक परिषद के सहयोग से बालसाहित्य शोध एवं संवर्धन समिति अल्मोड़ा द्वारा उत्तराखंड सेवा निधि में आयोजित एक कार्यशाला में कही गई । बालसाहित्य में विज्ञान लेखन कार्यशाला को संबोधित करते हुए डॉ. जोशी ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्र में बच्चों को बचपन से ही भूत का भय दिखाया जाता है । ये भय बच्चों के मन में इतना गहरा हो जाता है कि बड़े होकर भी यह डर लोगों को सताता है । आज समूचे पहाड़ में भूत पूजा के नाम से लोग परेशान हैं । इस स्थिति को तब और अधिक बल मिलता है जब मीडिया स्कूल में बच्चों को भूत लगने एवं स्कूल प्रशासकों द्वारा स्कूल में जागर के समाचारों को प्रमुखता से प्रकाशित एवं प्रसारित करता है ं। स्कूल प्रशासन बच्चों के बीमार होने पर जब डॉक्टर को बुलाने के बजाय ओझा को बुलाता है तो शिक्षाविदों की वैज्ञानिक जागरूकता का अंदाज लगता है । इसलिए बच्चों के साथ ही शिक्षकों, अभिभावकों एवं साहित्यकारों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना होगा ।




रंगकर्मी एवं साहित्यकार नंदकिशोर हटवाल ने कहा कि बालसाहित्य में यथार्थ के साथ ही कल्पना का समावेश होना जरूरी है । उन्होंने कहा कि आज के परिवेश में लोक कथाओं एवं परिकथाओं के माध्यम से बच्चों में वैज्ञानिक सोच जाग्रत करने की दिशा में सार्थक प्रयास किया जाना चाहिए। विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा के निदेशक डॉ. जे. सी. भट्ट ने बच्चों को वैज्ञानिक सोच आधारित सामग्री देने की बात कही ।भारत ज्ञान विज्ञान समिति देहरादून के महासचिव विजय भट्ट ने कहा कि हमारे समाज में आदिकाल से प्रचलित पहेलियां बच्चों को सोचने एवं तर्क करने का अवसर प्रदान करती हैं , उन्हांेने कहा कि आज के दौर में साहित्यकार विज्ञान पहेलियां बच्चों के लिए तैयार कर रहे हैं जो कि समय की मांग के अनुरूप अच्छा प्रयास है ।




उत्तराखंड पर्यावरण संस्थान के निदेशक पद्मश्री ललित पाण्डे, बालप्रहरी संपादक उदय किरौला , कुमाऊं विश्वविद्यालय ंिहंदी विभाग की प्रो. दिवा भट्ट, प्रो. जगतसिंह बिष्ट, डॉ. दीपा गोबाड़ी,बालसाहित्यकार आशा शैली, नवीन डिमरी’बादल’,डॉ. हेम दुबे,डॉ. पीतांबर अवस्थी, शशांक मिश्र, गोविंदबल्लभ बहुगुणा, खुशालसिंह खनी,खेमकरन सोमन, प्रकाश जोशी,साधना अग्रवाल, मंजू पांडे’उदिता’ आदि ने संबोधित किया । कार्यशाला में बच्चों के लिए लिखी गई बाल विज्ञान कविताओं का पाठ भी हुआ । इस अवसर पर आजादी से पूर्व प्रकाशित बाल पत्रिका बालसखा साहित समूचे देश से प्रकाशित 50 बाल विज्ञान पत्रिकाओं की प्रदर्शनी भी बालसाहित्य संस्थान के सौजन्य से लगाई गई थी ।




(प्रकाश जोशी)




सह संपादक बालप्रहरी




अल्मोड़ा,उत्तराखंड
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पुरस्कार : घमंडी लाल अग्रवाल पुरस्कृत




गुड़गांव : बाल साहित्यकार घमंडीलाल अग्रवाल की पुस्तक 101 शिशु गीत को बाल वाटिका बाल साहित्य पुरस्कार 2012 के लिए चुना गया है। 25 दिसंबर को भीलवाड़ा (राजस्थान) में आयोजित होने वाले कार्यक्रम में यह पुरस्कार उन्हें दिया जाएगा। इससे पहले उन्हें केंद्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार और सात बार हरियाणा साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका है। अब तक इनकी 46 पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। घमंडी लाल अग्रवाल राजकीय वरिष्ठ कन्या माध्यमिक विद्यालय जैकमपुरा में विज्ञान के अध्यापक हैं।
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सम्मान : राजस्थानी बाल साहित्यकार पुरस्कार से दीनदयाल शर्मा पुरस्कृत



हनुमानगढ़। केन्द्रीय साहित्य अकादेमी नई दिल्ली की ओर से बाल साहित्य पुरस्कार -2012 का पुरस्कार वितरण समारोह पुणे (महाराष्ट्र) के बाल गंधर्व रंग मंदिर के सभागर में आयोजित किया गया। इसमें राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार के लिए वरिष्ठ बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा को इनकी राजस्थानी बाल निबंध कृति 'बाळपणै री बातां के लिए पुरस्कृत किया गया। पुरस्कार वितरण के दौरान अकादेमी के सचिव के.एस.राव ने दीनदयाल शर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। सुप्रसिद्ध मराठी साहित्यकार एवं मुख्य अतिथि अनिल अवचट ने दीनदयाल शर्मा को माल्यार्पण की । तत्पश्चात अकादेमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने 50,000 ·की राशि एवं साहित्य अकादेमी का ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया। उल्लेखनीय है कि समारोह में देशभर के अनेक राज्यों से पधारे 24 भाषाओं के बाल साहित्यकारों को पुरस्कृत किया गया। दूसरे दिन लेखक पाठक · मिलन समारोह में सम्मानित साहित्यकारों ने सृजन प्रक्रिया एवं जीवन से जुड़े विशेष पहलुओं पर विचार व्यक्त किये । दो दिवसीय इस पुरस्कार वितरण समारोह के अंत में अकादेमी सचिव श्री राव ने सभी का आभार व्यक्त किया ।
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कविता : चिड़िया















चिड़िया लिए चोंच में तिनका


चली बनाने घर,


कौन रहेगा, कौन रहेगा


उस घर के अंदर?


चिड़िया के दो बच्चे होंगे


उस घर के अंदर,


पर निकले तो उड़ जाएंगे


फर फर फर फर फर।

-निरंकारदेव सेवक
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कविता : रोटी का पेड़















रोटी अगर पेड़ पर लगती

तोड़-तोड़कर खाते

तो पापा क्यो गेहूं लाते

और उन्हें पिसवाते?

रोज सवेरे उठकर हम

रोटी का पेड़ हिलाते,

रोटी गिरती टप-टप, टप-टप

उठा उठाकर खाते

- निरंकारदेव सेवक
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कविता : तितली रानी-तितली रानी



















तितली रानी-तितली रानी,

करती हो, दिन भर मनमानी।


बच्चों से क्यों डरती हो?


खुले गगन में उड़ती हो।


रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे,


सुन्दर-सुन्दर, प्यारे-प्यारे।


इन पंखों पर हमें बिठाओ,


दूर गगन की सैर कराओ।



















   

    - रोहित अग्रवाल
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आयोजन : माननीय राष्ट्रपति से मिले डा. नागेश पांडेय ‘संजय‘


माननीय राष्ट्रपति से मिले डा. नागेश पांडेय ‘संजय‘

महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के साथ डॉ  नागेश  पाण्डेय 
सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार डा. नागेश पांडेय ‘संजय‘ ने दस सदस्यीय शिष्ट मंडल  के साथ माननीय राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से मुलाकात की। राष्ट्रपति भवन में उन्होंने अपनी नयी किताब बाल साहित्य सृजन और समीक्षा भी उन्हें  भेंट की ।
  माननीय राष्ट्रपति को पांच सूत्रीय ज्ञापन भी सौंपा गया। उन्होंने आश्वासन दिया कि बाल साहित्यकारों के हितों के लिए यथासंभव प्रयास किये जाएँगे । शिष्ट मंडल में कोलकाता की बाल साहित्य परिषद् के उपाध्यक्ष भूधर नारायण, सूचना प्रसारण मंत्रालय प्रकाशन विभाग के पूर्व निदेशक पद्मश्री श्याम सिंह शशि, बच्चों का देश पत्रिका जयपुर  की संपादक कल्पना जैन , बाल प्रहरी अल्मोड़ा के संपादक उदय किरोला, बाल साहित्य समीक्षा के संपादक श्रीकृष्ण चन्द्र तिवारी, बाल मन अलीगढ  के संपादक निश्चल, टावर टोली राजस्थान के संपादक दीन दयाल शर्मा शामिल थे।
बाल साहित्य में पी-एच.डी.  डा. नागेश की अब तक 24 किताबे प्रकाषित हो चुकी हैं। जिनमें कविता  संग्रह  तुम्हारे लिए, आलोचना: बाल साहित्य के प्रतिमान, बाल साहित्य: सृजन और समीक्षा , बाल कहानी संग्रह: नेहा ने माफी मांगी, आधुनिक बाल कहानिया, अमरूद खट्टे हैं, मोती झरे टप-टप ,अपमान का बदला, भाग गए चूहे, दीदी का निर्णय, मुझे कुछ नहीं चाहिए, यस सर, नो सर ,बाल एकांकी संग्रह: छोटे मास्टरजी , शिशुगीत संग्रह: चल मेरे घोड़े, अपलम चपलम, हाथी को जुकाम , बाल कविता  संग्रह: यदि ऐसा हो जाए, लारी लप्पा , बाल पहेलियां: जो बूझे वह चतुर सुजान, चित्र पुस्तक: कद्दू की दावत , संपादित: न्यारे गीत हमारे, किशोरों की श्रेष्ठ कहानियाँ, बालिकाओं की श्रेष्ठ कहानियाँ, इंद्रधनुषी बाल कहानियाँ षामिल हैं।
वर्तमान में वे राजेंद्र प्रसाद स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मीरगंज, बरेली में शिक्षा विभागाध्यक्ष के रूप में सेवारत हैं।
डा. नागेश  को इस उपलब्धि पर  पूर्व विधायक भूपेंद्रनाथ, निरूपम शर्मा, रामप्रकाश  गोयल, डा. सुमन शर्मा, निर्मला सिंह, इंद्रदेव त्रिवेदी, फहीम करार  आदि ने बधार्इ्र दी है.




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कविता : वृक्षों से कुछ शिक्षा लें लें,


वृक्षों से कुछ शिक्षा ले लें




















वृक्षों से कुछ शिक्षा ले लें,
फल आये तो सब को दें दें।
फूल खिले तो कोई चुन ले,
परमारथ की चादर बुन ले।
इनसे दाल ,अनाज उगायें,
सब्जी, फल और तिलहन पायें।
गोंद, लाख, कपास सुयोगी ,
पेड़-पौध कितने उपयोगी।
कभी उर्वरक इनसे पायें,
जंगल बादल, बारिश लायें।
धरती को उपजाऊ कर दें,
और जीवन में खुशियाँ भर दें।
जन जीवन इन पर है निर्भर,
इनकी सेवा नित कर -नित कर .
नन्मुन -चुनमुन ये हरियाली ,
मानव जन को सदा निराली।

            शिखा चन्द्रा 

331,पवन विहार बरेली 
9411913104


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कविता : यदि हम भी सरिता होते तो

                                                           डॉ देश बन्धु  शाहजहांपुरी
 कविता : यदि हम  भी सरिता होते तो 
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कविता : अम्बर से धरती पर तारे !




अम्बर से धरती पर तारे ! 

जगमग-जगमग करते दीपक 
लगते कितने मनहर प्यारे,
मानों आज उतर आये हैं 
अम्बर से धरती पर तारे ! 

दीपों का त्योहार मनुज के
अतंर-तम को दूर करेगा,
दीपों का त्योहार मनुज के
नयनों में फिर स्नेह भरेगा ! 

धन आपस में बाँट-बूट कर 
एक नया नाता जोड़ेंगे,
और उमंगों की फुलझड़ियाँ
घर-घर में सुख से छोड़ेंगे ! 

दीपावलि का स्वागत करने
आओ हम भी दीप जलाएँ,
दीपावलि का स्वागत करने 
आओ हम भी नाचे गाएँ !


     परिचय
नाम :डॉ. महेंद्र भटनागर
जन्म :२६ जून १९२६ / झाँसी (उत्तर-प्रदेश)
शिक्षा :एम.ए. (१९४८)पी-एच.डी. (१९५७) नागपुर विश्वविद्यालय से।
कार्य :कमलाराजा कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय / जीवाजी विश्वविद्यालयग्वालियर से प्रोफेसर-अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त।
सम्प्रति :शोध-निर्देशक - हिन्दी भाषा एवं साहित्य।
कार्यक्षेत्र :चम्बल-अंचलमालवांचलबुंदेलखंड।
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कविता : अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बो

अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बो



अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बो
आसमान में बादल सौ ।
सौ बादल हैं प्यारे
रंग हैं जिनके न्यारे ।

हर बादल की भेड़ें सौ
हर भेड़ के रंग हैं दो ।
भेड़ें दौड़ लगाती हैं
नहीं पकड़ में आती हैं ।

बादल थककर चूर हुआ
रोने को मज़बूर हुआ ।
आँसू धरती पर आए
नन्हें पौधे हरषाए ।

रामेश्वर कम्बोज हिमांशु

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बाल गीत : रेल चली भई रेल चली,सीटी देकर रेल चली।






बाल गीत : डा. भैरूंलाल गर्ग 

रेल चली भई  रेल चली,सीटी देकर रेल चली।
कोई  चलती है बिजली से,कोई  पीकर तेल चली।
पूरब से पश्चिम जाए,उत्तर से दक्षिण आए।
देशवासियों का आपस में,है करवाती मेल चली।
जब स्टेशन आता है,हर कोई  घबराता है।
चढ़ती और उतरती सवारी,एक-दूजे को ठेल चली
थककर कभी न सुस्ताती,रात-दिवस चलती जाती।
पुल, सुरंग, बीहड़ जंगल में,अजब दिखाती खेल चली।
शीत-घाम की कठिन घड़ी,या वर्षा  की लगी झड़ी।
धुंध, कोहरा, आँधी, अंधड़,हर संकट को झेल चली।
रेल चली क्या देश चला,सफर सभी को लगे भला।
सूत्र एकता में बाँधे यह,नफरत दूर धकेल चली।
रेल चली भई  रेल चली,सीटी देकर रेल चली।


डा. भैरूंलाल गर्ग 
जन्म : १ जनवरी, १९४९ शिक्षा : एम. ए., पी-एच. डी.
प्रकाशित पुस्तकें ; बाल कहानी संग्रह : अनोखा पुरस्कार, उपकार का फल,सच्चा उपहार 
संपर्क :संपादक " बाल वाटिका" नन्द भवन,
कावाखेडा पार्क,
भीलवाड़ा (राजस्थान) 
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कविता : चन्दा सूरज खेलें आँख मिचौली




कुछ ऐसा हो जाए ओ जी

कुछ ऐसा हो जाए
धरती अंबर चन्दा सूरज
खेलें आँख मिचौली 
धूप चाँदनी वर्षा बादल
जमकर करें ठिठोली
चन्दा आए धरती पर फिर..
यहीं कहीं खो जाए.
कुछ ऐसा हो जाए ओ जी
कुछ ऐसा हो जाए
चन्दा की बुढ़िया से भी तो
करनी हैं कुछ बातें
ठिठुर-ठिठुर कर ठंडक में 
कैसे कटती हैं रातें
हम काते उसका चरखा
बुढ़िया रानी सो जाए.
कुछ ऐसा हो जाए ओ जी
कुछ ऐसा हो जाए.
ठंडा ठंडा होता चन्दा
उसको हम गर्मी दें
गर्मी में जब बहे पसीना 
हम उससे ठंडक लें
फिर काहे की सर्दी गर्मी
ये आए वो जाए. 
कुछ ऐसा हो जाए ओ जी
कुछ ऐसा हो जाए





मुबीना खान,
  प्रवक्ता  बी. एड. विभाग, 
लखीमपुर खीरी यू.पी.

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विज्ञान: जाबिर बिन हयान रसायन विज्ञान का पितामाह



जाबिर बिन हयान रसायन विज्ञान का पितामाह 

जाबिर बिन हयान रसायन विज्ञान का पितामाह है जिसने रसायन विज्ञान पर लगभग सौ पुस्तके एवं आलेख लिखे। इसकी किताबों ने यूरोप व एशिया में हलचल मचा दी। इसके बाद विज्ञान में नई-नई खोजें हुईं।
जाबिर का जन्म अरब के शहर तूस में 720 ई0 में हुआ था। पिता का नाम हयान था। उनकी औषद्यालय की दुकान थी जिस पर वह बैठने लगा। उसे बहुत सी जड़ी-बूटियों, दवाओं और  पत्थरों के सिलसिले में जानकारी हो गयी थी। पिता की मृत्यु के बाद तूस छोड़कर कूफा शहर पहुंचे। उन दिनों कूफा ज्ञान-विज्ञान का केन्द्र बना हुआ था। जाबिर को पढ़ने का बहुत शौक था। उन्होंने अपने गुरू जाफर सादिक से काफी फायदा उठाया।
22 साल की उम्र तक जाबिर बिन हयान ने कूफा में रह कर शोध कार्य किए। उसने रसायन विज्ञान से सम्बन्धित ऐसी खोजें कीं जिसकी उस दौर में कल्पना भी नहीं की जा सकती। यूरोप ने रसायन विज्ञान के क्षेत्र में जो तरक्की की, उसकी आधारशिला जाबिर के शोधों एवे अनुभवों पर रखी गयी। इसने गंधक के तेजाब का अविष्कार किया। इसने रासायनिक तत्वों को कार्बनिक और अकाबर्निक हिस्सों में विभाजित किया। इसने बताया कि समस्त जीव कोशिकाओं से निर्मित होते हैं जो रासायनिक क्रियाओं पर निर्भर होती हैं। उसने लोहे की जंग से एक ऐसी दवात बनाई जिसकी लिखाई रात के अंधेरे में आसानी से पढ़ी जा सकती थी। उसने ऐसा कागज़ अविष्कार किया जो आग से भी नहीं जलता था। उसने दवाओं को कल्माने का तरीका ईजाद किया। फिल्टर करना भी जाबिर की देन है। जाबिर ने बालों को काला करने के लिये एक खिजाब तैयार किया जो आज भी प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा कई महत्वपूर्ण उपकरण भी ईजाद किये। जाबिर की तरह दुनिया में छह शताब्दी तक कोई रसायन विज्ञानी पैदा नहीं हुआ। उसकी किताबें यूरोप में 18वीं सदी तक पाठ्यक्रम में शमिल रहीं। इसे विज्ञान में   नाम से जाना जाता है। इसकी अनुदित पुस्तकों में  एवं   अंग्रेज़ी में उपलब्ध हैं इसकी पुस्तक ‘अल-कीमिया’ का लैटिन अनुवाद अंग्रेज़ी विद्वान राबॅर्ट ऑफ चेस्टर ने 1144ई0 में किया था। इसकी पुस्तक ‘अलसबअीन’ का अनुवाद जेरार्ड ऑफ क्रेमूना ने 1187ई0 में किया था। उसके अनुवाद आज भी दुनिया भर की अह्म किताबों में मौजूद हैं जो उसे तेरह सदी गुजर जाने के बाद भी अमर बनाये हुये हैं।

http://en.wikipedia.org/wiki/J%C4%81bir_ibn_Hayy%C4%81n
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आयोजन : सिर्फ बच्चों का टीकाकरण कर देने या वैक्सीन की दवा पिला देने से बाल कल्याण नहीं होने वाला डा. राष्ट्रबंध्ु

 सिर्फ बच्चों का टीकाकरण कर देने या वैक्सीन की दवा पिला देने से बाल कल्याण नहीं होने वाला  डा. राष्ट्रबंध्ु 

बरेली। बाल साहित्य अब समाचारपत्रों से नदारद होता जा रहा है। उनकी जगह अब सूचनात्मक आलेखों ने ली है। टीवी चैनल्स अब बच्चों को फूहड़ तरीके से हंसाने की कोशिश कर रहे हैं। उनके कार्यक्रमों में नैतिकता, देशभक्ति, संवेदनशीलता और सामाजिक सांस्कृतिक पहलू नदारद हैं। सरकार मिड-डे मील पर तो, अरबों रुपये खर्च कर रही है, मगर बाल साहित्य को बढ़ावा देने के लिए उसके पास कोई योजनाएं नहीं हैं। यह कहना है भीलवाड़ा, राजस
्थान से प्रकाशित पत्रिका ‘बाल वाटिका’ के संपादक डा. भैरूंलाल गर्ग का। वे मुख्य अतिथि के रूप में तितली सोसाइटी पफॉर चिल्ड्रेन वेलपफेयर द्वारा आयोजित संगोष्ठी ‘बाल साहित्य पर मीडिया का प्रभाव’ पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।
डा. भैरूंलाल गर्ग को इस मौके पर ‘मो. वली खां स्मृति संपादक शिरोमणी तितली सम्मानः 2012’ एवं प्रमुख बाल साहित्य आलोचक डा. सुरेन्द्र विक्रम को ‘रियासत अली खान स्मृति बाल साहित्य सृजन तितली सम्मानः 2012’ से सम्मान पत्रा एवं स्मृति चिन्ह के साथ शाल उड़ाकर सम्मानित किया गया। इस मौके पर मासिक बाल समाचारपत्रा ‘जूनियर नाइट’ का विमोचन भी किया गया।
कार्यक्रम स्वागताध्यक्ष विकास अग्रवाल ने स्वागत भाषण पढ़ा और सभी अतिथियों एवं आगुन्तकों का अभिवादन किया।
रोटरी भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में देश भर से बाल साहित्यकार जुटे और बाल साहित्य के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देने पर बल दिया। कानपुर से आये ‘बाल साहित्य समीक्षा’ के संपादक एवं वरिष्ठ साहित्कार डा. राष्ट्रबंध्ु ने कहा कि सिर्फ बच्चों का टीकाकरण कर देने या वैक्सीन की दवा पिला देने से बाल कल्याण नहीं होने वाला। बच्चों में ईमानदारी, मानवता और सदभावना और उनके नैतिक चरित्रा का विकास करना भी हमारी जिम्मेदारी है। तब तक देश को जीवन मूल्यों से जु़ड़े जिम्मेदार नागरिक नहीं मिलेंगे, हमारा कल्याण नहीं हो सकता है और इसमें मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे लखनऊ के वरिष्ठ बाल साहित्य आलोचक डा. सुरेन्द्र विक्रम ने कहा कि बच्चे बाल साहित्य से विमुख होते जा रहे हैं। उनमें किताबें पढ़ने की आदत कम होती जा रही है। इसमें बच्चों के मां-बाप बराबर के दोषी हैं। वे बच्चों के मंहगे गिफ्रट आइटम तो खरीदकर देते हैं, मगर बाल पत्रिकाएं और पुस्तकें भेंट नहीं करते। साहित्यकारों की भी जिम्मेदारी है कि वे बड़े ही सहज और रोचक ढंग से लिखें। उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण बड़े ही परिपक्व होने चाहिए।
बाल साहित्यकार निर्मला सिंह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि विदेशांे में ट्रेन या बस के सफर के दौरान बच्चों के हाथों में किताबें दिखाई देती हैं और यहां के बच्चे मोबाइल पर गेम खेल रहे होते हैं।
शाहजहांपुर के बाल साहित्य समीक्षक एवं युवा साहित्यकार डा. नागेश पांडेय ‘संजय’ ने कहा कि मीडिया की अतिआध्ुनिकता के कारण बाल साहित्य अपने मूल उद्देश्य से विमुख हो रहा है। परिणामस्वरूप बच्चे जीवन मूल्यों से कट रहे हैं और वे भौतिकतावादी आंध्ी का शिकार हो रहे हैं।
संस्था की अध्यक्ष डा. मोनिका अग्रवाल ने कहा कि बच्चों का मन कोमल होता है। माताओं को चाहिए कि वे बचपन से ही बच्चों को लोरियों और बाल गीतों के माध्यम से संस्कारवान बनायें। मगर आज की माताओं को पहले जैसे शिशु गीत और लोरियां भी कहां याद हैं।
चर्चित लेखिका डा. करुणा पांडेय ने कहा कि एकल परिवारों के चलन ने बच्चों को अकेला कर दिया। दादी-नानी की कहानियां भी अब बच्चों को कौन सुनाता है। बच्चे टीवी देखकर वक्त गुजारते हैं।
संस्था के सचिव फहीम करार ने कहा कि दरअसल बच्चों को सही दिशा नहीं मिल पा रही है। मां-बाप के पास बच्चों के लिए समय ही नहीं है। इलेक्ट्रानिक्स गैजेट्स ही अब उनके दोस्त हैं। अब मशीन से दोस्ती करके बच्चा मशीन ही बनेगा। घर के बड़े-बूढ़ों को बच्चों के साथ अनुभव बांटना चाहिए, ताकि बच्चा सामाजिक बन सके।
कार्यक्रम के आखिर में बाल कविता पाठ का आयोजन भी हुआ। कृष्णा खंडेलवाल, रमेश गौतम, इंद्रदेव त्रिवेदी, कमल सक्सेना, शिखा चंद्रा आदि ने बाल काव्य पाठ किया।
संचालन वरिष्ठ साहित्यकार इंद्रदेव त्रिवेदी ने किया। कार्यक्रम में प्रो. राम प्रकाश गोयल, डा. ममता गोयल, मुबीना खान, रोहित अग्रवाल ‘हैंग’, डा. कामरान खान, रमेश गौतम, पूनम सेवक, रबीअ बहार, मिस्रेयार, मुबीन कैफ, गुल मदार आदि का विशेष सहयोग रहा।
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जानकारी : तिरंगे की गाथा


तिरंगे की गाथा 


झण्डा सिपर्फ कपड़े का टुकड़ा ही नहीं, बल्कि यह एक राष्ट्र, परिवार, समूह या किसी आस्था- विश्वास की निशानी होता है। यही वजह है कि सदियों से लोग अपने राष्ट्रीय ध्वज के लिए अपनी जान की बाजी लगाते आए हैं।
स्वतंत्राता संग्राम के दौरान सबसे पहले आज़ादी का झण्डा बहादुरशाह ज़पफर ने सन् 1857 में उठाया था शहंशाह ने आजादी के उस झण्डे पर कमल का पफूल और चपाती को निशानी के रूप में अपनाया था। झंडे के चारों ओर एक सुनहरी झालर लगी थी।
स्वतंत्राता कोलकत्ता ध्वज के रूप में शामिल हुआ। इस झण्ड़े में एक जैसी लम्बाई-चौड़ाई वाली तीन पट्टियों हरा, पीला व लाल रंग था। हरे रंग की पहली पट्ट्टी पर अधखुले सपफेद आठ कमल के पफूल बने थे। पीले रंग की दूसरी पट्टी पर नीले रंग में देवनागरी भाषा में ‘वन्दे मातरम्’ लिखा था। निचली तीसरी लाल पट्टी पर  सपफेद रंग में बंाई ओर सूरज और दाहिनी ओर एक चंद्रकला अंकित थी। यह झंडा सर्वप्रथम कोलकत्ता के पारसी बागान स्क्वेयर में 7 अगस्त 1906 को पफहराया गया।
आजादी की लड़ाई में गाँधी जी का चरखे वाला तिरंगा सन् 1921 में पहली बार मैदान में उतारा गया। गाँध्ी जी के तिरंगे में एक जैसी तीन पट्टियां थीं, जिनका रंग हरा, सपफेद और लाल था। इस झण्डे के बीच में एक बड़ा सा चरखा बना था। चूँकि झण्डे में इस्तेमाल किए गए रंग देश की अलग-अलग जातियों और वर्गों का इंगित थे, इसलिए कुछ लोगों ने ऐतराज़ उठाया। झण्डे की इस आलोचना को ध्यान में रखते हुये गाँध्ी जी ने इस झण्डे की रूपरेखा और रंग दोनो को ही सन् 1931 में बदल दिया। इस नये झण्डे में भी तीन पट्टियाँ रखी गयी थीं। पहली पट्टी को अब केसरिया रंग, दूसरे को सपफेद तथा तीसरी पट्टी को हरे रंग में दर्शाया गया।
आखिरकार 3 जून 1947 को जब अंग्रेज़ों ने भारत को आज़ाद करने की घोषणा की तब भारत की संविधन सभा ने एक अस्थाई कमेटी राष्ट्रीय ध्वज निर्माण के लिये बनायी। कमेटी ने जिस नमूने को तैयार किया उसे संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को भारत के राष्ट्र ध्वज की शक्ल में कुबूल कर लिया गया। हम इस झण्डे को तिरंगे के नाम से जानते हैं। केसरी रंग त्याग, सपफेद, रंग बलिदान और हरा रंग देश की खुशहाली का प्रतीक हैं।
तिरंगे के बीच में सपफेद पट्टी पर नीले रंग का 24 तीलियों वाला एक चक्र होता है, जो अशोक की लाट से लिया गया है। नीला रंग आकाश तथा नीचे अथाह समुद्र को चरितार्थ करता है। 24 तीलियाँ देश की लगातार तरक्की की निशानी है। जो दिन के 24 घण्टों को भी दर्शाती हैं।

हमारा राष्ट्रीय ध्वजः नियमावली
प्रत्येक देश का राष्ट्र ध्वज उस देश  की किसी धर्मिक और पवित्रा वस्तु जैसा ही होता है। इसलिये हर नागरिक का यह पहला कर्तव्य है कि वह अपने राष्ट्र ध्वज का सम्मान करे।
भारत के राष्ट्र ध्वज नियमावली के कुछ का़यदे कानूनों को यहाँ बताया जा रहा है-
1. राष्ट्र ध्वज को सूरज निकलने के वक़्त पफहराना और सूरज डूबने से पहिले उतार लेना चाहिए।    
2. राष्ट्र ध्वज को सदा सम्मान जनक जगहों पर ही पफहराना चाहिए।
3. राष्ट्र ध्वज को हमेशा तेज़ी से पफहराना चाहिए और ध्ीरे ध्ीरे उतारना चाहिए।
4. झण्डा चढ़ाते वक़्त इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि ग़लती से ध्वज के केसरी भाग की जगह ध्वज का हरा भाग न पफहरा दिया जाये।
5. राष्ट्र ध्वज को किसी भी हालत में किसी वक़्ता की मेज़ पर टेविल क्लाथ के रूप में नहीं बिछाना चाहिए, न ही उसका उपयोग मंच की सजावट के लिये करना चाहिए।
6. राष्ट्र ध्वज को किसी भी स्थिति में, किसी व्यक्ति या वस्तु विशेष के सामने झुकाना नहीं चाहिए।
7. राष्ट्र ध्वज को किसी भी हालत में, कटी-पफटी या मुड़ी-तुड़ी दशा में प्रदर्शित नही किया जाना चाहिए।
8. राष्ट्र ध्वज को कभी भी ज़मीन और पानी में नहीं गिरने देना चाहिए।
9. राष्ट्र ध्वज को किसी भी प्रकार का लेखन नहीं करना चाहिए।
10. राष्ट्र ध्वज पफट जाने पर, गंदा या अपवित्रा हो जाने पर ;जब इसे किसी शव पर डाला जाता हैद्ध उसे अकेले में जलाकर या गंगा में बहाकर या पिफर ज़मीन में गाड़कर खत्म कर देना चाहिए।
11.राजकीय और सैनिक अंत्येष्टियों को छोड़कर राष्ट्र ध्वज का उपयोग कभी आवरण (ढाँकने) के रूप में नहीं किया जाना चाहिए।
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सेहतनामा : दांतों की सफाई


बर्तनों की तरह न रगड़ें अपने दांतः डा. अमित


यूं तो हर खाने के बाद ब्रश करना चाहिए, लेकिन ऐसा थोड़ा मुश्किल है। मगर हर बार खाना खाने के बाद कुल्ला जरूर करना चाहिए। ज्यादातर बच्चे दांतों को बर्तन की तरह रगड़ते हैं, जोकि गलत है। इससे दांत घिस जाते हैं और दांतों में ठंडा-गर्म लगने लगता है। आमतौर पर लोग जिस तरह दांत साफ करते हैं। उससे 60-70 फीसदी ही सपफाई हो पाती है।
दांतों को हमेशा नरम ब्रश से हल्के दबाव के साथ धीरे -धीरे साफ करें। मुंह में एक तरफ से ब्रशिंग शुरू कर दूसरी तरफ जाएं। बारी-बारी से हर दांत को साफ करें। दांतों और मसूड़ों के जोड़ों की सफाई भी ढंग से करें। बच्चों के दूध् के दांत अगर खराब हो जाएं, तो बाद में पिफर टेढ़े-मेढ़े दांत निकलते हैं, जोकि चेहरे की खूबसूरती बिगाड़ते हैं।
जीभ की सफाई जरूरीः जीभ को क्लीनर और ब्रश दोनों से साफ किया जा सकता है। टंग क्लीनर का इस्तेमाल इस तरह करें कि खून न निकले।
कैसा ब्रश सहीः ब्रश नरम और आगे से पतला होना चाहिए। करीब दो-तीन महीने में या जब ब्रसल्स पफैल जाएं, तो ब्रश बदल देना चाहिए।
टूथ पेस्ट की भूमिकाः दांतों की सफाई में टूथपेस्ट की ज्यादा भूमिका नहीं होती। यह एक मीडियम है, जो लुब्रिकेशन, फॉमिंग और फ्रेशनिंग का काम करता है। असली एक्शन ब्रश करता है, लेकिन पिफर भी अगर टूथपेस्ट का इस्तेमाल करें, तो उसमें फलॉराइड होना चाहिए। यह दांतों में कीड़ा लगने से बचाता है। पिपरमेंट वगैरह से ताजगी का अहसास होता है। टूथपेस्ट मटर के दाने जितना लेना कापफी होता है।
माउथ वॉशः मुंह में अच्छी खुश्बू का अहसास कराता है। हाइजीन के लिहाज से अच्छा है, लेकिन इसका ज्यादा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। रात को दूध् पीने के बाद मुंह जरूर साफ करें।





डा. अमित कु. सक्सेना बीडीएस
कंसल्टेंट ओरो-डेन्टल सर्जन
लेक्चरॉर- इंस्टीट्यूट ऑफ डेन्टल साइंस


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आयोजन : बाल समाचारपत्र जूनियर नाईट का विमोचन

बरेली 7 नवम्बर 2012 रोटरी भवन में बाल समाचारपत्र जूनियर नाईट का विमोचन करते हुए सर्वप्रथम विकास अग्रवाल  मोनिका अग्रवाल डॉ नागेश पाण्डेय डॉ सुरेन्द्र विक्रम  डॉ राष्ट्र बंधु  डॉ भैरूंलाल गर्ग निर्मला सिंह फहीम क़रार डॉ करुणा पाण्डेय
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 सिर्फ बच्चों का टीकाकरण कर देने या वैक्सीन की दवा पिला देने से बाल कल्याण नहीं होने वाला  डा. राष्ट्रबंध्ु 

बरेली। बाल साहित्य अब समाचारपत्रों से नदारद होता जा रहा है। उनकी जगह अब सूचनात्मक आलेखों ने ली है। टीवी चैनल्स अब बच्चों को फूहड़ तरीके से हंसाने की कोशिश कर रहे हैं। उनके कार्यक्रमों में नैतिकता, देशभक्ति, संवेदनशीलता और सामाजिक सांस्कृतिक पहलू नदारद हैं। सरकार मिड-डे मील पर तो, अरबों रुपये खर्च कर रही है, मगर बाल साहित्य को बढ़ावा देने के लिए उसके पास कोई योजनाएं नहीं हैं। यह कहना है भीलवाड़ा, राजस
्थान से प्रकाशित पत्रिका ‘बाल वाटिका’ के संपादक डा. भैरूंलाल गर्ग का। वे मुख्य अतिथि के रूप में तितली सोसाइटी पफॉर चिल्ड्रेन वेलपफेयर द्वारा आयोजित संगोष्ठी ‘बाल साहित्य पर मीडिया का प्रभाव’ पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।
डा. भैरूंलाल गर्ग को इस मौके पर ‘मो. वली खां स्मृति संपादक शिरोमणी तितली सम्मानः 2012’ एवं प्रमुख बाल साहित्य आलोचक डा. सुरेन्द्र विक्रम को ‘रियासत अली खान स्मृति बाल साहित्य सृजन तितली सम्मानः 2012’ से सम्मान पत्रा एवं स्मृति चिन्ह के साथ शाल उड़ाकर सम्मानित किया गया। इस मौके पर मासिक बाल समाचारपत्रा ‘जूनियर नाइट’ का विमोचन भी किया गया।
कार्यक्रम स्वागताध्यक्ष विकास अग्रवाल ने स्वागत भाषण पढ़ा और सभी अतिथियों एवं आगुन्तकों का अभिवादन किया।
रोटरी भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में देश भर से बाल साहित्यकार जुटे और बाल साहित्य के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देने पर बल दिया। कानपुर से आये ‘बाल साहित्य समीक्षा’ के संपादक एवं वरिष्ठ साहित्कार डा. राष्ट्रबंध्ु ने कहा कि सिर्फ बच्चों का टीकाकरण कर देने या वैक्सीन की दवा पिला देने से बाल कल्याण नहीं होने वाला। बच्चों में ईमानदारी, मानवता और सदभावना और उनके नैतिक चरित्रा का विकास करना भी हमारी जिम्मेदारी है। तब तक देश को जीवन मूल्यों से जु़ड़े जिम्मेदार नागरिक नहीं मिलेंगे, हमारा कल्याण नहीं हो सकता है और इसमें मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे लखनऊ के वरिष्ठ बाल साहित्य आलोचक डा. सुरेन्द्र विक्रम ने कहा कि बच्चे बाल साहित्य से विमुख होते जा रहे हैं। उनमें किताबें पढ़ने की आदत कम होती जा रही है। इसमें बच्चों के मां-बाप बराबर के दोषी हैं। वे बच्चों के मंहगे गिफ्रट आइटम तो खरीदकर देते हैं, मगर बाल पत्रिकाएं और पुस्तकें भेंट नहीं करते। साहित्यकारों की भी जिम्मेदारी है कि वे बड़े ही सहज और रोचक ढंग से लिखें। उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण बड़े ही परिपक्व होने चाहिए।
बाल साहित्यकार निर्मला सिंह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि विदेशांे में ट्रेन या बस के सफर के दौरान बच्चों के हाथों में किताबें दिखाई देती हैं और यहां के बच्चे मोबाइल पर गेम खेल रहे होते हैं।
शाहजहांपुर के बाल साहित्य समीक्षक एवं युवा साहित्यकार डा. नागेश पांडेय ‘संजय’ ने कहा कि मीडिया की अतिआध्ुनिकता के कारण बाल साहित्य अपने मूल उद्देश्य से विमुख हो रहा है। परिणामस्वरूप बच्चे जीवन मूल्यों से कट रहे हैं और वे भौतिकतावादी आंध्ी का शिकार हो रहे हैं।
संस्था की अध्यक्ष डा. मोनिका अग्रवाल ने कहा कि बच्चों का मन कोमल होता है। माताओं को चाहिए कि वे बचपन से ही बच्चों को लोरियों और बाल गीतों के माध्यम से संस्कारवान बनायें। मगर आज की माताओं को पहले जैसे शिशु गीत और लोरियां भी कहां याद हैं।
चर्चित लेखिका डा. करुणा पांडेय ने कहा कि एकल परिवारों के चलन ने बच्चों को अकेला कर दिया। दादी-नानी की कहानियां भी अब बच्चों को कौन सुनाता है। बच्चे टीवी देखकर वक्त गुजारते हैं।
संस्था के सचिव फहीम करार ने कहा कि दरअसल बच्चों को सही दिशा नहीं मिल पा रही है। मां-बाप के पास बच्चों के लिए समय ही नहीं है। इलेक्ट्रानिक्स गैजेट्स ही अब उनके दोस्त हैं। अब मशीन से दोस्ती करके बच्चा मशीन ही बनेगा। घर के बड़े-बूढ़ों को बच्चों के साथ अनुभव बांटना चाहिए, ताकि बच्चा सामाजिक बन सके।
कार्यक्रम के आखिर में बाल कविता पाठ का आयोजन भी हुआ। कृष्णा खंडेलवाल, रमेश गौतम, इंद्रदेव त्रिवेदी, कमल सक्सेना, शिखा चंद्रा आदि ने बाल काव्य पाठ किया।
संचालन वरिष्ठ साहित्यकार इंद्रदेव त्रिवेदी ने किया। कार्यक्रम में प्रो. राम प्रकाश गोयल, डा. ममता गोयल, मुबीना खान, रोहित अग्रवाल ‘हैंग’, डा. कामरान खान, रमेश गौतम, पूनम सेवक, रबीअ बहार, मिस्रेयार, मुबीन कैफ, गुल मदार आदि का विशेष सहयोग रहा।
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बच्चों    की  दुनिया में आपका स्वागत है 
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