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तितली रानी-तितली रानी,
करती हो, दिन भर मनमानी।
बच्चों से क्यों डरती हो?
खुले गगन में उड़ती हो।
रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे,
सुन्दर-सुन्दर, प्यारे-प्यारे।
इन पंखों पर हमें बिठाओ,
दूर गगन की सैर कराओ।
- रोहित अग्रवाल ‘
Labels:
कविता,
रोहित अग्रवाल
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