कविता : रोटी का पेड़















रोटी अगर पेड़ पर लगती

तोड़-तोड़कर खाते

तो पापा क्यो गेहूं लाते

और उन्हें पिसवाते?

रोज सवेरे उठकर हम

रोटी का पेड़ हिलाते,

रोटी गिरती टप-टप, टप-टप

उठा उठाकर खाते

- निरंकारदेव सेवक

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