जानकारी : तिरंगे की गाथा


तिरंगे की गाथा 


झण्डा सिपर्फ कपड़े का टुकड़ा ही नहीं, बल्कि यह एक राष्ट्र, परिवार, समूह या किसी आस्था- विश्वास की निशानी होता है। यही वजह है कि सदियों से लोग अपने राष्ट्रीय ध्वज के लिए अपनी जान की बाजी लगाते आए हैं।
स्वतंत्राता संग्राम के दौरान सबसे पहले आज़ादी का झण्डा बहादुरशाह ज़पफर ने सन् 1857 में उठाया था शहंशाह ने आजादी के उस झण्डे पर कमल का पफूल और चपाती को निशानी के रूप में अपनाया था। झंडे के चारों ओर एक सुनहरी झालर लगी थी।
स्वतंत्राता कोलकत्ता ध्वज के रूप में शामिल हुआ। इस झण्ड़े में एक जैसी लम्बाई-चौड़ाई वाली तीन पट्टियों हरा, पीला व लाल रंग था। हरे रंग की पहली पट्ट्टी पर अधखुले सपफेद आठ कमल के पफूल बने थे। पीले रंग की दूसरी पट्टी पर नीले रंग में देवनागरी भाषा में ‘वन्दे मातरम्’ लिखा था। निचली तीसरी लाल पट्टी पर  सपफेद रंग में बंाई ओर सूरज और दाहिनी ओर एक चंद्रकला अंकित थी। यह झंडा सर्वप्रथम कोलकत्ता के पारसी बागान स्क्वेयर में 7 अगस्त 1906 को पफहराया गया।
आजादी की लड़ाई में गाँधी जी का चरखे वाला तिरंगा सन् 1921 में पहली बार मैदान में उतारा गया। गाँध्ी जी के तिरंगे में एक जैसी तीन पट्टियां थीं, जिनका रंग हरा, सपफेद और लाल था। इस झण्डे के बीच में एक बड़ा सा चरखा बना था। चूँकि झण्डे में इस्तेमाल किए गए रंग देश की अलग-अलग जातियों और वर्गों का इंगित थे, इसलिए कुछ लोगों ने ऐतराज़ उठाया। झण्डे की इस आलोचना को ध्यान में रखते हुये गाँध्ी जी ने इस झण्डे की रूपरेखा और रंग दोनो को ही सन् 1931 में बदल दिया। इस नये झण्डे में भी तीन पट्टियाँ रखी गयी थीं। पहली पट्टी को अब केसरिया रंग, दूसरे को सपफेद तथा तीसरी पट्टी को हरे रंग में दर्शाया गया।
आखिरकार 3 जून 1947 को जब अंग्रेज़ों ने भारत को आज़ाद करने की घोषणा की तब भारत की संविधन सभा ने एक अस्थाई कमेटी राष्ट्रीय ध्वज निर्माण के लिये बनायी। कमेटी ने जिस नमूने को तैयार किया उसे संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को भारत के राष्ट्र ध्वज की शक्ल में कुबूल कर लिया गया। हम इस झण्डे को तिरंगे के नाम से जानते हैं। केसरी रंग त्याग, सपफेद, रंग बलिदान और हरा रंग देश की खुशहाली का प्रतीक हैं।
तिरंगे के बीच में सपफेद पट्टी पर नीले रंग का 24 तीलियों वाला एक चक्र होता है, जो अशोक की लाट से लिया गया है। नीला रंग आकाश तथा नीचे अथाह समुद्र को चरितार्थ करता है। 24 तीलियाँ देश की लगातार तरक्की की निशानी है। जो दिन के 24 घण्टों को भी दर्शाती हैं।

हमारा राष्ट्रीय ध्वजः नियमावली
प्रत्येक देश का राष्ट्र ध्वज उस देश  की किसी धर्मिक और पवित्रा वस्तु जैसा ही होता है। इसलिये हर नागरिक का यह पहला कर्तव्य है कि वह अपने राष्ट्र ध्वज का सम्मान करे।
भारत के राष्ट्र ध्वज नियमावली के कुछ का़यदे कानूनों को यहाँ बताया जा रहा है-
1. राष्ट्र ध्वज को सूरज निकलने के वक़्त पफहराना और सूरज डूबने से पहिले उतार लेना चाहिए।    
2. राष्ट्र ध्वज को सदा सम्मान जनक जगहों पर ही पफहराना चाहिए।
3. राष्ट्र ध्वज को हमेशा तेज़ी से पफहराना चाहिए और ध्ीरे ध्ीरे उतारना चाहिए।
4. झण्डा चढ़ाते वक़्त इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि ग़लती से ध्वज के केसरी भाग की जगह ध्वज का हरा भाग न पफहरा दिया जाये।
5. राष्ट्र ध्वज को किसी भी हालत में किसी वक़्ता की मेज़ पर टेविल क्लाथ के रूप में नहीं बिछाना चाहिए, न ही उसका उपयोग मंच की सजावट के लिये करना चाहिए।
6. राष्ट्र ध्वज को किसी भी स्थिति में, किसी व्यक्ति या वस्तु विशेष के सामने झुकाना नहीं चाहिए।
7. राष्ट्र ध्वज को किसी भी हालत में, कटी-पफटी या मुड़ी-तुड़ी दशा में प्रदर्शित नही किया जाना चाहिए।
8. राष्ट्र ध्वज को कभी भी ज़मीन और पानी में नहीं गिरने देना चाहिए।
9. राष्ट्र ध्वज को किसी भी प्रकार का लेखन नहीं करना चाहिए।
10. राष्ट्र ध्वज पफट जाने पर, गंदा या अपवित्रा हो जाने पर ;जब इसे किसी शव पर डाला जाता हैद्ध उसे अकेले में जलाकर या गंगा में बहाकर या पिफर ज़मीन में गाड़कर खत्म कर देना चाहिए।
11.राजकीय और सैनिक अंत्येष्टियों को छोड़कर राष्ट्र ध्वज का उपयोग कभी आवरण (ढाँकने) के रूप में नहीं किया जाना चाहिए।

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