बाल गीत : रेल चली भई रेल चली,सीटी देकर रेल चली।






बाल गीत : डा. भैरूंलाल गर्ग 

रेल चली भई  रेल चली,सीटी देकर रेल चली।
कोई  चलती है बिजली से,कोई  पीकर तेल चली।
पूरब से पश्चिम जाए,उत्तर से दक्षिण आए।
देशवासियों का आपस में,है करवाती मेल चली।
जब स्टेशन आता है,हर कोई  घबराता है।
चढ़ती और उतरती सवारी,एक-दूजे को ठेल चली
थककर कभी न सुस्ताती,रात-दिवस चलती जाती।
पुल, सुरंग, बीहड़ जंगल में,अजब दिखाती खेल चली।
शीत-घाम की कठिन घड़ी,या वर्षा  की लगी झड़ी।
धुंध, कोहरा, आँधी, अंधड़,हर संकट को झेल चली।
रेल चली क्या देश चला,सफर सभी को लगे भला।
सूत्र एकता में बाँधे यह,नफरत दूर धकेल चली।
रेल चली भई  रेल चली,सीटी देकर रेल चली।


डा. भैरूंलाल गर्ग 
जन्म : १ जनवरी, १९४९ शिक्षा : एम. ए., पी-एच. डी.
प्रकाशित पुस्तकें ; बाल कहानी संग्रह : अनोखा पुरस्कार, उपकार का फल,सच्चा उपहार 
संपर्क :संपादक " बाल वाटिका" नन्द भवन,
कावाखेडा पार्क,
भीलवाड़ा (राजस्थान) 

1 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

Bahut hi pyara leyout hai blog ka. Aasha hai isi tarah sundar rachnayen bhi padhne ko milti rahengi.

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